हेलो दोस्तों , कैसे हो आप सब ?
इस बार प्रस्तुत है हमारी जयपुर की यात्रा , इस यात्रा को हमने अपनी कार से पूरा किया।
हुआ यूँ कि हम घर पर थे और हमारे पास दो तीन दिन का छुट्टी का समय था। हमने अचानक प्लान बनाया की कही ऐसी जगह घूमा जाये जिसको हम दो दिन में कवर कर सकते है। तब ख्याल आया की क्यों न हम जयपुर चले जो की दिल्ली से ज्यादा दूर भी नहीं है और वह पर है दो दिन में आराम से घूम सकते है।
तो फाइनल यही हुआ की चलो जयपुर ही चलते है। फिर क्या था, बैग पैक किया और निकल पड़े बिना प्लानिंग की यात्रा पर।
अँधेरा होने से पहले हम जयपुर के आस पास पहुंच गए थे। भूख लग रही थी तो रस्ते में एक रेस्टोरेंट पर रूककर खाना खाया। इसके बाद जैसे ही चले तुरंत पुलिस नाका आ गया एक पुलिस वाले ने टोर्च जलाकर देख कि सीट बेल्ट नहीं पहनी है। हम कल्हण खाकर चले ही थे ओर इससे पहले सीट बेल्ट पहनते कि ये पुलिस नाका आ गया। फिर क्या , वही हुआ जो होना था।
इसके बाद अँधेरा होने तक हम जयपुर पहुंच चुके थे। जब रास्ते में जा रहे थे तो लग रहा था की हम किसी राजा के महल में आये हो क्योंकि वहां की सजावट ही कुछ ऐसी थी। दुकाने भी महल की तरह बानी हुयी थी।
इस बार प्रस्तुत है हमारी जयपुर की यात्रा , इस यात्रा को हमने अपनी कार से पूरा किया।
हुआ यूँ कि हम घर पर थे और हमारे पास दो तीन दिन का छुट्टी का समय था। हमने अचानक प्लान बनाया की कही ऐसी जगह घूमा जाये जिसको हम दो दिन में कवर कर सकते है। तब ख्याल आया की क्यों न हम जयपुर चले जो की दिल्ली से ज्यादा दूर भी नहीं है और वह पर है दो दिन में आराम से घूम सकते है।
तो फाइनल यही हुआ की चलो जयपुर ही चलते है। फिर क्या था, बैग पैक किया और निकल पड़े बिना प्लानिंग की यात्रा पर।
अँधेरा होने से पहले हम जयपुर के आस पास पहुंच गए थे। भूख लग रही थी तो रस्ते में एक रेस्टोरेंट पर रूककर खाना खाया। इसके बाद जैसे ही चले तुरंत पुलिस नाका आ गया एक पुलिस वाले ने टोर्च जलाकर देख कि सीट बेल्ट नहीं पहनी है। हम कल्हण खाकर चले ही थे ओर इससे पहले सीट बेल्ट पहनते कि ये पुलिस नाका आ गया। फिर क्या , वही हुआ जो होना था।
इसके बाद अँधेरा होने तक हम जयपुर पहुंच चुके थे। जब रास्ते में जा रहे थे तो लग रहा था की हम किसी राजा के महल में आये हो क्योंकि वहां की सजावट ही कुछ ऐसी थी। दुकाने भी महल की तरह बानी हुयी थी।
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